नासमझ
आज के देशबन्दी के माहौल में आम आदमी के दर्द को शब्दों में व्यक्त करने का एक विनम्र प्रयास आपके सम्मुख प्रस्तुत है। आशा है आप इसके पीछे छिपी पीड़ा को समझेंगे और इसे राजनैतिक चश्मे से नहीं पढ़ेंगे।
पकी फसल को बेचना चाहते हो।
बड़े नासमझ हो यह क्या चाहते हो।।
मजूरी से पेट भरा चाहते हो।
बड़े नासमझ हो यह क्या चाहते हो।।
लौट अपने घर जाना चाहते हो।
बड़े नासमझ हो यह क्या चाहते हो।।
मजबूरियों पर रोना चाहते हो।
बड़े नासमझ हो यह क्या चाहते हो।।
इज्जत खुशी से जीना चाहते हो।
बड़े नासमझ हो यह क्या चाहते हो।।
पड़ोसी से अमन चैन चाहते हो।
बड़े नासमझ हो यह क्या चाहते हो।।
अर्थी को कंधा देना चाहते हो।
बड़े नासमझ हो यह क्या चाहते हो।।
हाकिम पर सवाल करा चाहते हो।
बड़े नासमझ हो यह क्या चाहते हो।।
लाठी वालों से अक्ल चाहते हो।
बड़े नासमझ हो यह क्या चाहते हो।।
अनिल चावला Follow @AnilThinker
१४ अप्रैल २०२०