कोविड काल की छः कविताएँ

कवि - अनिल चावला  
   

शुभ की आस - आठ दोहेे

काहे चिंता करत हो, जब वो तोरे साथ।  


मन की गाँठे खोल दो, समझ राम को नाथ   ।। १ ।।


जो आया वो जाएगा, यही विधि का विधान।  


वो खास जो चला गया, उसे राम का मान   ।। २ ।।


चहुँ ओर काल का नाच, राजा गावै गान।  


अपने गुण बखान करे, भरे पड़े श्मशान   ।। ३ ।।


मन की बाताँ वो करे, जिसको सौंपों काम।  


काम धाम कुछ करे ना, भजो राम का नाम   ।। ४ ।।


खुद को मानत राम है, समस्त गुण की खान।  


अहंकार हद से बढ़ौ, अंत निकट लो जान   ।। ५ ।।


फूटे भाग हम सब के, करे मदारी राज।  


गली गली लाशें बिछीं, आँसू सूखे आज   ।। ६ ।।


आशा दामन मत छोड़, भली करेंगे राम।  


रोग और गुरूर सबका, होगा काम तमाम   ।। ७ ।।


दुख आया तो जाएगा, मत करो मन उदास।  


मन कर्म वचन राम रख, मत तज शुभ की आस   ।। ८ ।।


अनिल चावला      


१ मई २०२१


लालच - सात दोहे

आज, महामारी के दौर में सब ओर लालच का नंगा नाच दिख रहा है। ऐसे में लालच के विषय में सात दोहे प्रस्तुत हैं।

लोभ तोरा सागर सम, इसकी थाह ना पार।  


दुख की गठरी बाँधता, तू मूरख लाचार   ।। १ ।।


पीर पराई देख के, मन हर्षित हो जात।  


हर ठौर नफ़ा देखता, अधम गिद्ध की जात   ।। २ ।।


महल गहने औ वाहन, ना हो इनसे शान।  


जब तोको गाली बके, गली गली का श्वान   ।। ३ ।।


लूट का धन जमा करा, ले दुखियों की हाय।  


तू भी तड़पत जाएगा, पुत भी रोता जाय   ।। ४ ।।


जो वंश का नाश करे, ऐसा धन किस काम।  


रोग कलेश का होगा, सदा तोर घर धाम   ।। ५ ।।


मस्जिद में माथा रगड़, या मंदिर में नाक।  


लोभ पाप तले डूबा, हो न सके तू पाक   ।। ६ ।।


अर्थ धर्म का मूल है, धर्म अर्थ का मूल।  


धर्म भूल लालच करत, लावत जीवन शूल   ।। ७ ।।


अनिल चावला      


२५ अप्रैल २०२१


नेताजी को समर्पित सात दोहे

सत्ता सुख भोगन चला, लिए जगत की हाय।  


अनंत दुख सागर मिले, कौन तुझे समझाय   ।। १ ।।


जन मन का आशीष हो, मिले स्वर्ग की राह।  


तोरे सब पुण्य डुबोय, जयकारे की चाह   ।। २ ।।


ये मदहोशी-ऐ-गुरूर, जो सिर पे चढ़ जाय।  


अंखियन से दिखत नहीं, कान बधिर हो जाय   ।। ३ ।।


चीख चिल्ला बोलत हो, जैसे कौआ खाय।  


गुणीजन का साथ नहीं, बात दम नहीं आय   ।। ४ ।।


राम नाम जपते रहो, रावण मनहि बसाय।  


तेरी अनंत लालसा, राम को ना सुहाय   ।। ५ ।।


जन जन गाली देत है, क्रोध तुझे क्यों आय।  


बोया पेड़ बबूल का, आम कहाँ से पाय   ।। ६ ।।


बात करन से डरत हो, मुँह भी रहे छिपाय।  


साँसन में जो बसत है, उससे कौन बचाय   ।। ७ ।।


अनिल चावला      


२३ अप्रैल २०२१


जीत का विश्वास

यह कोरोना काल की ग़ज़ल है। अंधेरों में आशा ढूँढने का एक प्रयास है।


आलम तन्हाई का कुछ कम होता।  


कोरोना ना मेरा हमदम होता   ।।


ये कैसा हरजाई बालम है।  


जो बोसा इसका नहीं हज़म होता   ।।


जान औ अज़ीज़ों से दूर कर दिया।  


ऐसा और कौन मिरा सनम होता   ।।


गले पड़ा है तो तुझसे जूझेंगें।  


जिंदगी से लगाव नहीं कम होता   ।।


ना कोई सहारा ना कोई ढाल।  


लड़ने को काफ़ी अपना दम होता   ।।


मोहब्बत दुआएँ मेरे साथ हैं।  


इनके मुकाबिल नहीं दमखम होता   ।।


जीतेंगें और हम ही जीतेंगें।  


अनिल को ये विश्वास हर कदम होता   ।।


  हरजाई - हर किसी के पास जाने वाला या वाली  


  बोसा - चुम्बन  


  अज़ीज़ - प्रियजन  


  जान - प्रियतमा  


अनिल चावला      


१९ अप्रैल २०२१


कोरोना काल में साथी की मौत

वो कौन अनजान सा शख्स था जो चला गया।  


मेरा न कोई, न तेरा हि था जो चला गया   ।।


रोया न था मैं, न उसके जनाज़े गया था।  


वो आम इन्सान बीमार था सो चला गया   ।।


मेरा व उसका कई साल का संग रहा था।  


साथी के जाने पे रोने का मन तो चला गया   ।।


ऐलान किया गया है कि उत्सव मनाओ।  


लो मौत से ग़म व आंसू अभी तो चला गया   ।।


वो शख्स ना कोई नेता था, ना खास इन्सान।  


जां-औ-जिगर था, बस अफसोस वो चला गया   ।।


अनिल चावला      


१७ अप्रैल २०२१


नासमझ

आज के देशबन्दी के माहौल में आम आदमी के दर्द को शब्दों में व्यक्त करने का एक विनम्र प्रयास आपके सम्मुख प्रस्तुत है। आशा है आप इसके पीछे छिपी पीड़ा को समझेंगे और इसे राजनैतिक चश्मे से नहीं पढ़ेंगे।

पकी फसल को बेचना चाहते हो।  

बड़े नासमझ हो यह क्या चाहते हो   ।।

मजूरी से पेट भरा चाहते हो।  

बड़े नासमझ हो यह क्या चाहते हो   ।।

लौट अपने घर जाना चाहते हो।  

बड़े नासमझ हो यह क्या चाहते हो   ।।

मजबूरियों पर रोना चाहते हो।  

बड़े नासमझ हो यह क्या चाहते हो   ।।

इज्जत खुशी से जीना चाहते हो।  

बड़े नासमझ हो यह क्या चाहते हो   ।।

पड़ोसी से अमन चैन चाहते हो।  

बड़े नासमझ हो यह क्या चाहते हो   ।।

अर्थी को कंधा देना चाहते हो।  

बड़े नासमझ हो यह क्या चाहते हो   ।।

हाकिम पर सवाल करा चाहते हो।  

बड़े नासमझ हो यह क्या चाहते हो   ।।

लाठी वालों से अक्ल चाहते हो।  

बड़े नासमझ हो यह क्या चाहते हो   ।।

अनिल चावला      

१४ अप्रैल २०२०

ANIL CHAWLA is an engineer (B.Tech. (Mech. Engg.), IIT Bombay) and a lawyer by qualification but a philosopher by vocation and an advocate, insolvency professional and strategic consultant by profession.
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Anil Chawla

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