एक मूर्ख मंत्री, नीरव मोदी और देश का दुर्भाग्य
कहा जाता है कि एक बुद्धिमान शत्रु मूर्ख मित्र से बेहतर होता है और राजा को मंत्री बहुत सोच समझ कर रखना चाहिए। एक मूर्ख मंत्री महापराक्रमी राजा के समस्त पराक्रम को नष्ट करने के लिए पर्याप्त होता है। मोदी जी महापराक्रमी हैं इसमें किसी को कोई संदेह नहीं हो सकता। उनके मंत्रियों के बारे में कुछ कहना मानहानि के आरोपों को आमंत्रित कर सकता है, इसलिए कुछ ना कहना ही उचित होता है। पर कभी कभी राष्ट्र हिट में बोलना आवश्यक हो जाता है, इसलिए आज कुछ कह रहा हूँ।
आजकल नीरव मोदी नामक तथाकथित घोटाला चर्चा में है। सत्य यह है कि इस घोटाले के निर्माण का सारा श्रेय माननीय वित्त मंत्री के विशाल कन्धों पर रखा जा सकता है। निश्चय ही कतिपय बैंक अधिकारियों द्वारा नीरव मोदी और उनके कुछ रिश्तेदारों की कंपनियों पर विशेष मेहरबानियाँ की और ऐसा करते हुए बैंक एवं रिज़र्व बैंक के निर्देशों का उल्लंघन भी किया। जब यह तथ्य बैंक के सर्वोच्च अधिकारी के ध्यान में आया तो स्वाभाविक है कि उन्होंने वित्त मंत्रालय को इससे अवगत कराया होगा। उस समय तक नीरव मोदी की और से बैंक के प्रति अपनी जिम्मेदारियों में कोई चूक नहीं हुई थी। नीरव मोदी और उनकी कंपनियों की विश्व बाज़ार में इतनी साख थी कि बैंक को देय राशि उनके लिए अंतर्राष्ट्रीय वित्त बाज़ार से प्राप्त करना कोई कठिन कार्य नहीं था।
यदि वित्त मंत्री में लेश मात्र भी समझदारी होती तो वे नीरव मोदी को प्रेम से बुलाते और उनसे कहते कि वे एक माह में पंजाब नेशनल बैंक सहित सभी राष्ट्रीयकृत बैंकों के प्रति अपनी देनदारियां चुका दें। नीरव मोदी किसी विदेशी बैंक से ऋण ले कर समस्त भारतीय बैंकों की देनदारियाँ एक या दो माह में बड़ी आसानी से चुका देता। हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि नीरव मोदी और उनकी समस्त कंपनियों की ब्रांड गुडविल आज से एक माह पूर्व तक, एक अनुमान के अनुसार, पचास हज़ार करोड़ से अधिक थी। अतः बीस या पच्चीस हज़ार करोड़ की व्यवस्था करना नीरव मोदी के लिए कोई कठिन कार्य नहीं था।
वैसे एक और बात ध्यान देने योग्य है कि यदि मैं बैंक से ऋण लेने जाता हूँ और बैंक मुझे बिना अपनी प्रक्रिया पूर्ण किये ऋण दे देता है तो यह मेरा नहीं बैंक का दोष है और इसके लिए मुझे दोषी नहीं ठहराया जा सकता। प्रथम दृष्टयः नीरव मोदी प्रकरण में दोष बैंक अधिकारियों या रिज़र्व बैंक के अधिकारियों का प्रतीत होता है। पर समझदारी दोष निर्धारण में नहीं अपितु धन की सुरक्षा मंझ होती है। भारत सरकार एवं सम्बंधित बैंक को अपने धन को सुरक्षित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए था। अपराधी को सजा दिलाने का काम तदुपरांत किया जा सकता था।
अफ़सोस ऐसा नहीं किया गया। हमारे विद्वान् वकील वित्त मंत्री यह भूल गए कि अब वो वकील नहीं हैं और देश के वित्त की सुरक्षा उनका प्राथमिक दायित्व है, दोषियों को सजा दिलाना बाद की बात है। उन्होंने नीरव मोदी से बात करना या उन्हें एक मौक़ा देना भी उपयुक्त नहीं समझा और सारा प्रकरण जांच एजेंसियों को सौंप दिया।
प्रत्येक व्यापार एक घोड़े की तरह होता है जो ज़िंदा हो तो बहुत मूल्यवान होता है और मर जाए तो उस घोड़े का गोश्त बिकता तो है पर कुछ ख़ास कीमत नहीं दे पाता। अभी मैनें जिस गुडविल की बात की थी वह ज़िंदा घोड़े के गुणों की कीमत होती है। ज़िंदा घोड़े को गोश्त बना देने पर गुडविल हवा में गुम हो जाती है। हमारे देश के माननीय वित्त मंत्री महोदय ने अनेकों कुत्ते नीरव मोदी नामक ज़िंदा घोड़े पर छोड़ दिए जो उस घोड़े का गोश्त नोच नोच कर एकत्र करने लगे। ये कुत्ते अपनी बहादुरी बखान करने लगे कि उन्होंने इतने हज़ार करोड़ का गोश्त एकत्र कर लिया। पर दुःखद और कटु सत्य यह है कि एक मूर्ख मंत्री की नासमझी से वह घोड़ा मर गया।
देश को इस बात के लिए दुःखी होना चाहिए कि विश्व के पटल पर से हमारे देश का एक बहुमूल्य ब्रांड हमने अपनी मूर्खता से मार दिया। नीरव मोदी और उनके आभूषणों को उनका व्यक्तिगत व्यापार मानना भूल होगी। वे हमारे देश का नाम रोशन कर रहे थे। आज भारत के निर्यात व्यापार का एक बहुत बड़ा हिस्सा हीरों तथा आभूषणों के निर्यात से आता है। कुछ वर्ष पूर्व तक भारतीय विदेशी स्टोर्स को केवल माल देते थे और ब्रांड विदेशी स्टोर्स का होता था। आज भी विश्व भर में भारतीय ब्रांड से आभूषण बेचने वाले गिने चुने लोग ही हैं और उनमें एक प्रमुख नाम नीरव मोदी का था। दुःख यह है कि हम उनके इस राष्ट्रीय योगदान का सम्मान नहीं कर पाए और उन्हें एक अपमानपूर्ण मृत्यु का फरमान सुना दिया गया।
जो लोग ग्यारह हज़ार करोड़ गुम हो जाने का रोना रो रहे हैं वे नहीं जानते कि राष्ट्रीय हानि उससे कई गुना अधिक हुई है। माननीय वित्त मंत्री की नासमझी से राष्ट्रीय हानि तो हुई ही है उन्होंने अपनी पार्टी के राजनैतिक हितों पर भी कुठाराघात किया है। अभी तक भारतीय जनता पार्टी इस बात पर गर्व करती थी कि उनके शासन काल में कोई घोटाला नहीं हुआ, अब सफाई देती फिर रही है। मैं अपने प्रिय एवं माननीय प्रधान मंत्री जी से बस इतना ही कहना चाहता हूँ कि माना बुद्धिमान लोग कष्टदायी होते हैं पर फिर भी मूर्खों के मुकाबले लाभदायक होते हैं। यदि आप दीर्घ काल तक राज्य करना चाहते हैं तो मूर्खों से मुक्ति पा कर बुद्धिमानों को सहना सीखना होगा।