ऐ मेरी जौहर-आ-ज़बी
आप समझ ही गए होंगे कि मैं किस रूमानी गाने की बात करने जा रहा हूँ। पचपन वर्ष पूर्व यह नज़्म आयी थी। फिल्म थी वक्त, गीतकार मशहूर शायर साहिर लुधियानवी, संगीतकार रवि और गायक मन्ना डे। आज इतने वर्षों के बाद भी भारत की लगभग हर शादी में जब संगीत का कार्यक्रम होता है तो दूल्हे अथवा दुल्हन के माता पिता इसी गाने पर थिरकते हैं। बढ़ती उम्र में प्यार के नशे को अभिव्यक्त करने वाला इसके मुकाबले का शायद कोई दूसरा गीत हिंदी या ऊर्दू में नहीं है।
आश्चर्य यह है कि इस कालजयी नज़्म के मुखड़े में आने वाले मुख्य शब्दों का अर्थ अधिकतर लोग नहीं जानते। जौहर-आ-ज़बी का अर्थ जाने बिना इस गाने का आनंद अधूरा है। जौहर-आ-ज़बी का मतलब होता है गुणवान हिरनी। नायिका की आँखें हिरणी की तरह हैं। वह चुस्ती फुर्ती चपलता में हिरणी जैसी है। स्त्री तन की तुलना तो हिरणी से अनेक बार की गयी है, पर नायक इससे आगे बढ़ कर नायिका के गुणों को देख रहा है। उन गुणों का वर्णन करते हुए ही नज़्म में आगे कहता है कि "ये शोखियाँ ये बाँकपन जो तुझ में है कहीं नहीं, दिलों को जीतने का फ़न जो तुझ में है कहीं नहीं"।
तारीफ करने के बाद कवि कहता है कि "मैं तेरा आशिक-ए-जाविदां"। जाविदां का अर्थ होता है शाश्वत अर्थात हमेशा रहने वाला। हिन्दू कवियों ने तो जन्म जन्मांतर के रिश्ते की बात कई बार की है। इस नज़्म में साहिर लुधियानवी भी वही बात कर रहे हैं। आशिकी का नशा यदि जवानी के उतरने के साथ ढल जाए तो वह नशा कच्चा है। आशिक-ए-जाविदां तो अपने महबूब को मरने के बाद भी उसी शिद्दत से चाहता रहता है।
आइए जब हर तरफ बीमारी, महामारी और मौत की बातें चल रही हैं, सब कुछ भुला कर अपने दिलबर में डूब कर यह गीत गाएं - ऐ मेरी जौहर-आ-ज़बी तू अभी तक है हसीं और मैं जवान। विश्वास रखिये कि आशिक-ए-जाविदां को ना कोई ग़म होता है ना कोई खौफ। परमानंद की इसी स्थिति को तो जन्नत कहा गया है।
अनिल चावला Follow @AnilThinker
२६ अप्रैल २०२०